गुरुवार, अप्रैल 01, 2010

कानून और इन्सानियत

पिछले एक महीने से आश्रम के साथ जितनी घटनाएँ हुई हैं, वो किसी से छुपी नहीं है, पर हाँ मिडिया ने आश्रम की सच्चाई अभी तक लोंगो के सामने नहीं रक्खी है। आश्रम के गुरु महाराज अभी भी अपनी इन्शानियत की कीमत चूका रहे हैं। उन्हें पहले १४ दिनों के हिये पुलिस डिमांड में रक्खा गया था जिसे अगली सुनवाई पर पुलिस के चालान न पेश करने की वजह से ७ दिन और बढा दिया गया और फिर अगली सुनवाई में ४-६ दिनों के लिए और निलंबित हर दिया गया। मैं जानता हूँ कानून में ऐसी बातें आम ही चुकी हैं और अब ये सब सुन कर हमें शायद फर्क ना पड़ता हो पर आश्रम के नन्हे बच्चे जब मासूमियत से सवाल पूछते हैं की हमारे गुरुमहाराज कब आयेगे तो जावाब देना मुश्किल हो जाता है , उनके लिए तो उनके गुरुमहाराज ही सब कुछ थे। वो जब बड़ी सरलता से पूछते हैं की जब हमारे गुरुमहाराज ने कुछ नहीं किया तो उन्हें जेल में क्यों रक्खा गया है तो उन्हें ये समझाना मुश्किल है की इस अजीब सी दुनिया में परियों और राजकुमारों के आलावा राक्षस भी हैं , और कहानियों की तरह जरुर इस कहानी का अंत भी अच्छा होगा पर तुम्हे अभी तो सब कुछ चुपचाप झेलना होगा ।
आश्रम की सारी व्यवस्था शासन देख रहा है हम उसके लिए उसके आभारी हैं। पर बच्चो को केवल दाल-रोटी और कपडे देकर ही क्या हम सब अपनी जिम्मेदारियों से बच जायेगे ? उन्हें इस वक्त सब कुछ मिल रहा है पर पिता का प्यार तो उनके गुरुमहाराज के साथ ही चला गया है। आश्रम एक परिवार जैसा चल रहा था, जब बच्चे सामान तोड़ देते तो गुरुमहाराज उसे बनवा लाते थे, पर आज जो चीजें टूटी हैं वो वैसे ही पड़ी हुई हैं , उन्हें बनवाने के लिए एह लम्बी सरकारी प्रक्रिया से गुजरना होगा । कानून आज इंसानियत से ज्यादा बड़ा हो गया है।

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