मंगलवार, अप्रैल 06, 2010

गुरुकुल आश्रम और बच्चे

समाचार पत्रों में ख़बरें आती हैं लोंगों की दिल्चिस्पी का हिस्सा बनाने तक रहती हैं और फिर वैसे ही गायब हो जाती हैं, पर कभी-कभी ये ख़बरें खुद से जुड़े हुए लोंगो के जीवन में तूफान खड़ा कर जाती हैं

कुछ राजनीतिज्ञों ने अपने स्वार्थ के लिए सहारा न्यूज़ के साथ मिलकर गुरुकुल आश्रम के संचालक नारायण राव के स्टिंग ओपरेशन के नाम पर एक भयानक साजिस को अंजाम दिया, हालाँकि उस साजिस का पर्दापास होने में अभी कानून की तरफ से वक्त है फिर भी लोंगो को सच्चाई बतलाने की हमारी कवायद जारी हैइस साजिस में सबने आपना उल्लू सीधा कियान्यूज़ चैनल्स को अपने आधे घंटे का प्रोग्राम मिल गया और अख़बार वालों को अपने पन्ने भरने के लिए एक खबरराजनितिज्ञ भी अपनी - अपनी कूटनीति के दावं खेलने में व्यस्त हो गए हैं। अब राज्यसभा के गलियारों में आश्रम का मुद्दा भी गूंजेगा।पर आश्रम में बच्चों की वो प्यारी सी दुनिया पूरी तरह बदल गयी है। सरकारने सुरक्षा के लिए गार्ड्स लगाकर और व्यवस्था बनाये रखने के लिए सामाज कल्याण विभाग को लगाकर ज़रूर बच्चो के प्रति उदारता दिखाई है पर बच्चो की खुशियाँ वापस लौटाने के लिए ये नाकाफी हैक्योंकि सरकार बच्चों के खाने पिने की व्यवस्था तो कर सकती है पर अपने साथ बच्चों की खुसी के लिए कुछ भी करने का वो सदिक्षा कहाँ से लाएगी जो सिर्फ नारायण राव जैसे लोंगो में ही होती है

मैं फिर से एक ही बात को बार बार कहना चाहूँगा की मैं और आप या फिर पूरी सरकार मिल कर भी बच्चो को वो खुशियाँ नहीं दे सकती जो अकेले गुरुमहाराज (नारायण राव) दे सकते थेपिछले रविवार को आश्रम की गौशाला में एक गाय और उसका बच्चा ख़त्म हो गएगाय और बच्चे को बचने की हर संभव कोशिश की गयी पर वे नहीं बचे, आश्रम में पहले - खरगोश थे, और बड़े आकर के चूहे, पर अभी सब गायब हो गए हैंबच्चे कहते हैं अगर गुरुमहाराज होते तो ऐसा नहीं होता। हालाँकि उनकी देखभाल उस वक्त भी बच्चे करते थे और अभी भी बच्चे ही करते हैं पर आज वो नेतृत्व नहीं है जो नारायण राव के वक्त हुआ करता था। मैं नहीं कहता की नारायण राव के रहने से कोई चमत्कार होता और वो गाय और उसका बच्चा बच जाते फिर भी एक कसक तो रह ही जाती है ना की काश गुरुमहाराज इस वक्त आश्रम में होते ! मंदिर में भी रोज़ शाम प्राथना होती है, पर मैंने वो शाम की जगमगाहट वापस नहीं देखी जोमैने पहले दिन देखी थी

कुछ लोंगो ने नारायण राव पर आरोप लगाया था की वे बच्चों की आड़ में लोंगो को उल्लू बना रहे हैं। मैं उन लोंगो को भी जवाब देना चाहता हूँ-

अगर सिर्फ पैसों के लिए नारायण राव ने आश्रम को चलने का निर्णय लिया तो मेरे हिसाब से या तो वो बहुत बड़े दूर-दृष्टा रहे होंगे जो ये जनता होगा की १५ साल पहले वो जिस काम में हाथ डालने वाले हैं उसमे कुछ दानदाताओं से मिले हुए रकम से वे अपना उल्लू सीधा कर सकेंगे या फिर पागल जो बिना सोचे समझे कम करने में विश्वास रखता है, क्योंकि आश्रम के कुशल सञ्चालन में जितने पापड़ बेलने पड़ते हैं वो, केवल एक संचालक जान सकता हैदूर से बैठकर दूसरों पर आरोप लगाना बड़ा आसन काम है पर जब वो खुद पर बिताती है तो समझ में आता है की वास्तविकता क्या है

आज से १०-११ साल पहले नारायण राव ने आश्रम की नीवं तब रखी थी जब उनके पास कुछ नहीं था। उनके पास आश्रम के नाम पर इकट्ठा किये केवल दो-चार बच्चे थे, उस वक्त ना तो उनके पास बच्चों को रखने के लिए कोई स्थाई प्रबंध था और ना ही उन्हें खिलने की कोई नियमित व्यवस्था, कुछ था तो बस एक अच्छी भावना और बच्चों के लिए कुछ कर जाने की तमन्ना। दलदल शिवनी (मोवा) से शुरू की हुई ये कहानी गुढ़ियारी रोड (कोटा) से होती हुई आज जाकर गुरुकुल आश्रम (हथबंद) में जाकर रुकी है

नारायण राव के पास एक स्कूटर थी उस वक्त धुल बहरे रास्तों से उसी पर वे बच्चों के लिए सब्जी वगैरह लेट थे। ये सब कुछ बच्चों से सुनी हुई घटनाओं का अंश मात्र है पूरी कहानी में इतने उतर- चढाव हैं की आप या मेरे जैसे लोग होते तो कब का हिम्मत छोड़ चुके होते पर नारायण राव का सदुत्साह जारी रहा। पर शायद इसी सदुत्साह की कीमत उन्हें चुकानी पद रही है

नारायण राव पर जिस बच्ची को बेचने का आरोप लगा है, अगर नारायण राव नहीं होते तो शायद वो बच्ची जिंदा भी नहीं बचती जब उसे आश्रम लाया गया था तो उसके गले और बदन पर खरोंच था और उसका शारीर खुद के मल से बुरी तरह सना हुआ था। शारीर इतना कमजोर था की अगर - दिन वो सही देखभाल नहीं पति तो सचमुच ख़त्म हो जाती। नारायण राव ने सिर्फ एक गलती की है उन्होंने कानून से ऊपर इन्शानियत को रखा। सच है आज कानून इन्शानियत से बड़ा हैशायद इसी वजह से नारायण राव जैसे लोग कम है और जो हैं वो किसी ना किसी स्सजिस का शिकार बन रहें हैं। शायद यही इस कलयुगी दुनिया का वसूल हैपर मैं भगवन पर अँधा विश्वास करता हूँ मैं मानता हूँ की भगवन कभी अच्छे आदमी के साथ नाइंसाफी नहीं होने देगा और गुनाहगार जरुर एक ना एक दिन सजा पायेगा।

सोनी सर के नाम एक ख़त

आदरणीय सोनी सर, सबसे पहले मैं आपसे क्षमा चाहूँगा, की अपनी व्यस्तता के कारण मैं आपसे संपर्क नहीं कर पाया। महोदय आपने जो हमारा साथ दिया है , मैं उसके लिए आपका आभारी हूँ। गुरुमहाराज (नारायण राव) के साथ जो कुछ हुआ उसके बाद हमारा विश्वास मिडिया से उठ चूका था पर आप जैसे लोग पत्रकारिता के अच्छे पहलु को जिंदा रखे हुए हैं। मैं आपकी भावुकता का कायल हो गया हूँ।

महोदय जैसे की मैंने पहले ही बतलाया है की मैं ना कोई लेखक हूँ न ही कोई पत्रकार मैं बस एक आम छात्र हूँ जो एक दिन इत्तेफाक से बच्चों से मिला और उनकी तोतली बन्तों के मंत्र में बांध गया। आप आश्रम जा चुके हैं और बच्चों से मिल चुके हैं इसलिए आपको मुझसे बेहतर तरीके से मालूम होगा की ये बच्चे आपनी मासूमियत से किसी पर भी जादू कर सकते हैं। मैं आपसे सच कहता हूँ मुझे उन प्यारे बच्चों पर बिलकुल भी दया नहीं आती मैं उनसे प्यार करता हूँ और आज उसी प्यार ने मुझे ये सब लिखने पर मजबूर कर दिया है।

महोदय आज महीने भर से ज्यादा का वक्त गुजर गया है, जब से इन बच्चों के प्यारी सी दुनिया में ग्रहण लगा है। नारायण राव पुलीस रिमांड में हैंवो व्यक्ति जो इंसानियत की मिसाल है और जिसे लोंगो को अपनी पलकों पर बिठाना चाहिए उसे नाहक सजा काटने पर विवास किया जा रहा है। नारायण राव से बच्चों की खुशियाँ जुडी हैं, और नारायण राव और आश्रम को थोडा भी जानने वाला इंसान इस बात को अच्छी तरह से जनता है।

राजनीती ने आपने स्वार्थ के लिए मिडिया के साथ मिलकर नारायण राव को बदनाम कर दिया। हालाँकि मैं ये बात जनता हूँ की नारायण राव को जानने वाला इंसान इस खबर की सच्चाई पहचानता है।आपने गुरुकुल आश्रम के बच्चों और बच्चों के गुरुमहाराज की सच्चाई को लोगों तक पहुचने का ज़िम्मा उठाया है वो काबिलेतारीफ है और मैं बच्चों की तरफ से फिर से आपका आभार प्रकट करता हूँ। पर सर अभी भी कुछ बातें मुझे समझ में नहीं आ रही हैं - आखिर क्या वजह है की इतनी कोशिशों के बावजूद गुरुमहाराज अभी तक पुलिश रिमांड में हैं। क्यों पुलिश चलन पेश करने में इतना वक्त लगा रही है। और क्यों पुलिश की टालमटोल पर कोई सवाल नहीं कर रहा है?
सर, मैंने ब्लॉग लिखना केवल इस वजह से सुरु किया था क्योंकि मैं बच्चों और अपनी बातों को सीधा लोगों तक पहुँचाना चाहता हूँ, मेरा कोई पाठक वर्ग नहीं है, क्या आप मेरी बातों को लोगों तक पहुचने में मेरी मदद करेंगे। मैं आपके सहयोग के लिए आपका कृतज्ञ रहूँगा।

गुरुवार, अप्रैल 01, 2010

कानून और इन्सानियत

पिछले एक महीने से आश्रम के साथ जितनी घटनाएँ हुई हैं, वो किसी से छुपी नहीं है, पर हाँ मिडिया ने आश्रम की सच्चाई अभी तक लोंगो के सामने नहीं रक्खी है। आश्रम के गुरु महाराज अभी भी अपनी इन्शानियत की कीमत चूका रहे हैं। उन्हें पहले १४ दिनों के हिये पुलिस डिमांड में रक्खा गया था जिसे अगली सुनवाई पर पुलिस के चालान न पेश करने की वजह से ७ दिन और बढा दिया गया और फिर अगली सुनवाई में ४-६ दिनों के लिए और निलंबित हर दिया गया। मैं जानता हूँ कानून में ऐसी बातें आम ही चुकी हैं और अब ये सब सुन कर हमें शायद फर्क ना पड़ता हो पर आश्रम के नन्हे बच्चे जब मासूमियत से सवाल पूछते हैं की हमारे गुरुमहाराज कब आयेगे तो जावाब देना मुश्किल हो जाता है , उनके लिए तो उनके गुरुमहाराज ही सब कुछ थे। वो जब बड़ी सरलता से पूछते हैं की जब हमारे गुरुमहाराज ने कुछ नहीं किया तो उन्हें जेल में क्यों रक्खा गया है तो उन्हें ये समझाना मुश्किल है की इस अजीब सी दुनिया में परियों और राजकुमारों के आलावा राक्षस भी हैं , और कहानियों की तरह जरुर इस कहानी का अंत भी अच्छा होगा पर तुम्हे अभी तो सब कुछ चुपचाप झेलना होगा ।
आश्रम की सारी व्यवस्था शासन देख रहा है हम उसके लिए उसके आभारी हैं। पर बच्चो को केवल दाल-रोटी और कपडे देकर ही क्या हम सब अपनी जिम्मेदारियों से बच जायेगे ? उन्हें इस वक्त सब कुछ मिल रहा है पर पिता का प्यार तो उनके गुरुमहाराज के साथ ही चला गया है। आश्रम एक परिवार जैसा चल रहा था, जब बच्चे सामान तोड़ देते तो गुरुमहाराज उसे बनवा लाते थे, पर आज जो चीजें टूटी हैं वो वैसे ही पड़ी हुई हैं , उन्हें बनवाने के लिए एह लम्बी सरकारी प्रक्रिया से गुजरना होगा । कानून आज इंसानियत से ज्यादा बड़ा हो गया है।

गुरुवार, मार्च 25, 2010

मासूम बच्चों पर राजनीती

राजधानी में बीतें दिनों एक खबर खासी चर्चा में रही 'बच्ची को बेचा गया' । सच बात तो इतनी ही है की ऐसी ख़बरें पढ़ते ही हमारा दिमाग सीधा निर्णय सुनाता है की इसके दोषी को सजा दी जाये। लोंगो के पास वक्त की कमी है और शायद इस वजह से हमने ख़बरों के लिए अख़बारों को सब कुछ समझ रक्खा है। मैं एक आम इन्सान हूँ और मैं भी आज तक इन्ही चीजों को अपनाता आया हूं पर आज मुझे अपने तरीकों को बदलने की जरुरत पड़ी है, क्योंकि आज इन्सानीयत पर सवाल उठ खड़े हुए हें।
मैं भगवान पर बहुत विश्वास करता हूँ पर मेरे अपने विचार हैं की भगवान मंदिरों में नहीं कैद हो सकते इसलिए इधर वर्षों से मैंने मंदिर जाना छोड़ रक्खा था, पर एक शाम मुझे अपनी कसम तोडनी पड़ी , क्योंकि किसी वजह से मैंने एक शाम बच्चों और गुरुमाहाराज के साथ गुजारी बच्चो के आग्रह पर मैं आश्रम के मंदिर चला तो गया पर शायद मन से नहीं पर थोड़ी देर बाद ही मुझे झूमना पड़ा , ये आदिवासी प्यारे बच्चे जिस तरह ख़ुशी से बेहिचक माइक पर इतनी कुशलता से भजन गा रहे थे उसे देखकर किसी को सोचने पर विवश होना पड़ेगा की आखिर इन बच्चों की प्रतिभा को कैसी कुशलता से उभरा गया है। मैं निश्चित तौर पर ये कह सकता हूँ , की सारी सुविधाएँ पाने वाला बच्चा भी आज पहली बार माइक पकड़ने से डरेगा। तो आखिर आश्रम के इन आनाथ बच्चों में ऐसा क्या है, जबकि इनकी शिक्षा का काम अभी चल ही रहा है? हम 'तारे ज़मीन पर' और ' ३ इडियट्स' जैसी फिल्में देखकर खुश तो बहुत होतें हैं पर रियल ज़िन्दगी में ऐसा कोई शिक्षक होता है तो उसे बच्ची बेचने और धारा३७२ जैसे अपराधों में जेल जाता हुआ देखते रहते हैं क्यों , क्योंकि हम एक आम इन्सान हैं और राजनीती और कानून के सामने कुछ नहीं हैं , तो क्या वो प्यारे और नन्हे बच्चे जिनमे से कुछ को तो अपने माँ - बाप का नाम भी नहीं पता क्या वो राजनीती से लड़ सकते हैं?
.... गुरुकुल आश्रम को मैं ज्यादा समय से नहीं जनता शायद मेरी इस बात से कुछ लोंगो के मन में कुछ सवाल उठ सकते हैं पर मुझे यकीं है की इस पोस्ट को पढने के बाद आपको जवाब मिल जायेंगे। नन्हे और प्यारे बच्चों ने पहली मुलाकात में ही मुझ पर जादू सा कर दिया था। इस कलयुगी दुनिया की दुनियादारी से दूर नारायण राव नामक सख्स से ने एक बड़ी प्यारी दुनिया बने है , इस दुनिया का मैं कायल हूँ। पर इधर कुछ दिनों से ये प्यारी दुनिया इस कलयुगी दुनिया की राजनीती में घिसिट रही है।
मैं कोई पत्रकार नहीं हूँ न ही कोई लेखक , मैं एक इन्सान हूँ जो बच्चों के आंसू नहीं देख सकता? जो लोग अख़बारों की भाषा पर बच्चों के आंसूं से ज्यादा यकीन करते हैं क्या कोई उनमे से मुझे जवब देना चाहेगा की नारायण राव जैसा इन्सान जिसने आश्रम को अपना सब कुछ समझा और जिसके आज १९ दिनों से पुलिस रिमांड में होने की वजह से हँसते खेलते बंच्चों के आंसू गिर रहे हैं , वो बच्ची बेचने का कम कैसे कर सकता है? और अगर इसका जवाब उनके पास नहीं है तो बताएं की आखिर इस सरे मामले में बंच्चो की क्या गलती है ? आखिर आश्रम से उन्हें निकलने की कोशिश क्यों की गयी?आश्रम में दशवीं के पांच बच्चे पढ़ रहें हैं आखिर बोर्ड परीक्षा के बीच में उन्हें दुसरे आश्रम में भेजने का निर्णय क्यों लिया गया? क्यों आनन् - फानन में इतने जल्दी-जल्दी फैसले किये गए?क्या आज राजनीती और मिडिया इंसानियत से ऊपर आ गए हैं की सारे फैसले मिडिया और राजनीती के दबाव में किये जा रहें हैं?
जिस दिन बच्चों को अलग कर देने का फैसला किया गया अगर उस दिन आप बच्चों की हालत अपनी आँखों से देख लेते तो निश्चित तौर पे आप भी रो पड़ते। वर्षों से एक परिवार की तरह रह रहे बच्चों से उनके पिता सामान गुरुमाहाराज को अगर कोई छीन ले और फिर उन प्यारे बच्चों को सुरक्षा का झांसा देकर कर उनके पुरे परिवार को बिखरने की कोशिश की जाये तो उन पर क्या बीतेगी इसका अंदाजा आप नहीं लगा सकते। शायद ही लोंगो को पता हो की इस आश्रम को बच्चों ने अपने हाथों से बनाया है। तो क्या कोई मुझे ये बतला सकता है की कोईअपने घर से कैसे इस तरह निकला जा सकता है?
मेरा अपना अटल विश्वास है की गुरुमहाराज को जल्द ही कानून भी बेकसूर मन लेगा बहुत जल्द आश्रम को उसकी मान्यता भी मिल जाएगी। और अगर भगवान् बच्चों में बसता है तो जल्द ही बच्चों को उनके पुराने दिन वापस मेल जायेंगे पर तब तक नन्हे बच्चों के जो आंसू गिरे हैं उन सबका हिसाब उन लोंगो को भगवान् के सामने देना होगा जिन लोंगो ने एक अच्छे इन्सान को बदनाम करने और मासूम बच्चों को राजनीती में घसीटने का गुनाह किया है।