गुरुवार, मार्च 25, 2010

मासूम बच्चों पर राजनीती

राजधानी में बीतें दिनों एक खबर खासी चर्चा में रही 'बच्ची को बेचा गया' । सच बात तो इतनी ही है की ऐसी ख़बरें पढ़ते ही हमारा दिमाग सीधा निर्णय सुनाता है की इसके दोषी को सजा दी जाये। लोंगो के पास वक्त की कमी है और शायद इस वजह से हमने ख़बरों के लिए अख़बारों को सब कुछ समझ रक्खा है। मैं एक आम इन्सान हूँ और मैं भी आज तक इन्ही चीजों को अपनाता आया हूं पर आज मुझे अपने तरीकों को बदलने की जरुरत पड़ी है, क्योंकि आज इन्सानीयत पर सवाल उठ खड़े हुए हें।
मैं भगवान पर बहुत विश्वास करता हूँ पर मेरे अपने विचार हैं की भगवान मंदिरों में नहीं कैद हो सकते इसलिए इधर वर्षों से मैंने मंदिर जाना छोड़ रक्खा था, पर एक शाम मुझे अपनी कसम तोडनी पड़ी , क्योंकि किसी वजह से मैंने एक शाम बच्चों और गुरुमाहाराज के साथ गुजारी बच्चो के आग्रह पर मैं आश्रम के मंदिर चला तो गया पर शायद मन से नहीं पर थोड़ी देर बाद ही मुझे झूमना पड़ा , ये आदिवासी प्यारे बच्चे जिस तरह ख़ुशी से बेहिचक माइक पर इतनी कुशलता से भजन गा रहे थे उसे देखकर किसी को सोचने पर विवश होना पड़ेगा की आखिर इन बच्चों की प्रतिभा को कैसी कुशलता से उभरा गया है। मैं निश्चित तौर पर ये कह सकता हूँ , की सारी सुविधाएँ पाने वाला बच्चा भी आज पहली बार माइक पकड़ने से डरेगा। तो आखिर आश्रम के इन आनाथ बच्चों में ऐसा क्या है, जबकि इनकी शिक्षा का काम अभी चल ही रहा है? हम 'तारे ज़मीन पर' और ' ३ इडियट्स' जैसी फिल्में देखकर खुश तो बहुत होतें हैं पर रियल ज़िन्दगी में ऐसा कोई शिक्षक होता है तो उसे बच्ची बेचने और धारा३७२ जैसे अपराधों में जेल जाता हुआ देखते रहते हैं क्यों , क्योंकि हम एक आम इन्सान हैं और राजनीती और कानून के सामने कुछ नहीं हैं , तो क्या वो प्यारे और नन्हे बच्चे जिनमे से कुछ को तो अपने माँ - बाप का नाम भी नहीं पता क्या वो राजनीती से लड़ सकते हैं?
.... गुरुकुल आश्रम को मैं ज्यादा समय से नहीं जनता शायद मेरी इस बात से कुछ लोंगो के मन में कुछ सवाल उठ सकते हैं पर मुझे यकीं है की इस पोस्ट को पढने के बाद आपको जवाब मिल जायेंगे। नन्हे और प्यारे बच्चों ने पहली मुलाकात में ही मुझ पर जादू सा कर दिया था। इस कलयुगी दुनिया की दुनियादारी से दूर नारायण राव नामक सख्स से ने एक बड़ी प्यारी दुनिया बने है , इस दुनिया का मैं कायल हूँ। पर इधर कुछ दिनों से ये प्यारी दुनिया इस कलयुगी दुनिया की राजनीती में घिसिट रही है।
मैं कोई पत्रकार नहीं हूँ न ही कोई लेखक , मैं एक इन्सान हूँ जो बच्चों के आंसू नहीं देख सकता? जो लोग अख़बारों की भाषा पर बच्चों के आंसूं से ज्यादा यकीन करते हैं क्या कोई उनमे से मुझे जवब देना चाहेगा की नारायण राव जैसा इन्सान जिसने आश्रम को अपना सब कुछ समझा और जिसके आज १९ दिनों से पुलिस रिमांड में होने की वजह से हँसते खेलते बंच्चों के आंसू गिर रहे हैं , वो बच्ची बेचने का कम कैसे कर सकता है? और अगर इसका जवाब उनके पास नहीं है तो बताएं की आखिर इस सरे मामले में बंच्चो की क्या गलती है ? आखिर आश्रम से उन्हें निकलने की कोशिश क्यों की गयी?आश्रम में दशवीं के पांच बच्चे पढ़ रहें हैं आखिर बोर्ड परीक्षा के बीच में उन्हें दुसरे आश्रम में भेजने का निर्णय क्यों लिया गया? क्यों आनन् - फानन में इतने जल्दी-जल्दी फैसले किये गए?क्या आज राजनीती और मिडिया इंसानियत से ऊपर आ गए हैं की सारे फैसले मिडिया और राजनीती के दबाव में किये जा रहें हैं?
जिस दिन बच्चों को अलग कर देने का फैसला किया गया अगर उस दिन आप बच्चों की हालत अपनी आँखों से देख लेते तो निश्चित तौर पे आप भी रो पड़ते। वर्षों से एक परिवार की तरह रह रहे बच्चों से उनके पिता सामान गुरुमाहाराज को अगर कोई छीन ले और फिर उन प्यारे बच्चों को सुरक्षा का झांसा देकर कर उनके पुरे परिवार को बिखरने की कोशिश की जाये तो उन पर क्या बीतेगी इसका अंदाजा आप नहीं लगा सकते। शायद ही लोंगो को पता हो की इस आश्रम को बच्चों ने अपने हाथों से बनाया है। तो क्या कोई मुझे ये बतला सकता है की कोईअपने घर से कैसे इस तरह निकला जा सकता है?
मेरा अपना अटल विश्वास है की गुरुमहाराज को जल्द ही कानून भी बेकसूर मन लेगा बहुत जल्द आश्रम को उसकी मान्यता भी मिल जाएगी। और अगर भगवान् बच्चों में बसता है तो जल्द ही बच्चों को उनके पुराने दिन वापस मेल जायेंगे पर तब तक नन्हे बच्चों के जो आंसू गिरे हैं उन सबका हिसाब उन लोंगो को भगवान् के सामने देना होगा जिन लोंगो ने एक अच्छे इन्सान को बदनाम करने और मासूम बच्चों को राजनीती में घसीटने का गुनाह किया है।